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आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन

सफलता के सात सूत्र साधन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4254
आईएसबीएन :0000

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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...


परिस्थितियों के सम्मुख घुटने न टेकने और सफलता के बाद दूने उत्साह से उठने वाले कभी भी परास्त नहीं कहे जा सकते फिर चाहे वे कभी स्थूल विजय के अधिकारी भले ही न बने हों। हारना वास्तव में वह है असफल उसे ही कहा जा सकता है, जो एक बार गिरकर उठने की हिम्मत खो देता है। एक बार की असफलता से निराश होकर मैदान से हट जाता है। पिछली पराजय से पस्त-हिम्मत न होकर अगली सफलता के लिए प्रयत्न करने वालों की पिछली असफलताओं का सारा अपवाद स्वयं ही मिट जाया करता है। इसीलिए विजय का यशस्वी श्रेय लेने वाले फल के प्रति उत्सुक न रहकर प्रयत्न एवं पुरुषार्थ में ही लगे रहते हैं।

असफलताओं के आघात से निराश होकर बैठ रहना सबसे बड़ी कायरता है। असफलताओं की कसौटी पर ही मनुष्य के धैर्य, साहस तथा लगनशीलता की परख होती है। जो इस कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा पुरुषार्थी और अपने ध्येय का धनी होता है और ऐसे ही कर्मवीरों को विचारवान लोग असफल होने पर भी सफल ही मानते हैं। जीवन में निर्विरोध अथवा निरंतर सफलताओं की परंपरा गर्व-गौरव अथवा हर्षातिरेक का विषय नहीं है। असफलता का आघात पाए बिना मनुष्य पूर्ण रूप से परिपक्व नहीं हो पाता। उसके मन, बुद्धि तथा आत्मा में कच्चापन बना रहता है। उसकी एकांगी विजय न तो सरस हो पाती है और न संतोषप्रद। परिश्रम के बादं विश्राम और कष्टों के बाद सुविधा की तरह ही सफलता का आनंद असफलता के बाद ही आता है। असफलता के अभाव में अनुभवों से रहित व्यक्ति दुनियाँ को ठीक से नहीं समझ पाता।

मनुष्य का निरंतर सफल होते जाना बहुत अधिक हितकर नहीं होता। ऐसी ही स्थिति में वह अपने पुरुषार्थ पर भरोसा करने के बजाय प्रारब्ध पर भरोसा करने लगता है। उसे अपने प्रारब्ध पर अंधविश्वास हो जाता है और अपने को एक चमत्कारी व्यक्ति समझने लगता है। उसे सफलताओं में अति विश्वास हो जाने से अभिमान हो जाता है। प्रयत्न के प्रति उदासीन और अवरोधों के प्रति असावधान हो जाता है। एक साथ सफलताओं को पाते जाने से मनुष्य अंदर से इतना कमजोर हो जाता है कि जब कभी उसको सहसा असफलता का सामना करना पड़ जाता है तो वह एक दम निराश, निरापद तथा निष्क्रिय हो जाता है कि फिर उठ ही नहीं पाता। निरंतर सफल होते रहने वाले व्यक्ति कभी-कभी आई हुई असफलता से इतने घबरा जाते हैं कि आत्महत्या तक कर बैठते हैं। असफलता से शून्य सफलता कभी भी निरापद नहीं होती।

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    अनुक्रम

  1. सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
  2. सफलता की सही कसौटी
  3. असफलता से निराश न हों
  4. प्रयत्न और परिस्थितियाँ
  5. अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
  6. सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
  7. सात साधन
  8. सतत कर्मशील रहें
  9. आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
  10. पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
  11. छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
  12. सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
  13. अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए

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